अपरिचय के इस विंध्याचल में वे आत्मीयता का वह ठिकाना हैं जहाँ कुछ क्षण ठिठक कर अपने आँसू, अपना सुख और अपनी कातरता बांटी जा सकती है।वे शब्दों के राजमहल में ऐसे शिल्पकार हैं जो निस्वार्थ,निष्पाप,निष्कलंक अनगढ़ को गढ़ते हैं अपनत्व की कलम से।
हिंदी पत्रकारिता के ऐसे अजातशत्रु मेरे संपादक रहे Vishwanath Sachdev आज उम्र के आठवें दशक को पूरा कर रहे हैं।वे रचते हैं:
"खुद रचने पड़ते हैं अपने पंख
खुद सिरजना पड़ता है आकाश अपना।"
तमाम अनगढ़ पत्रकारों,लेखकों को उनके हिस्से का आसमान दिखानेवाले इस शिखर संपादक को मुबारक हो आज का दिन।
सतत सक्रिय और रचनारत रहे आपकी कलम।न कमजोर पड़े उसकी धार,मार और सरोकार।
मेरे जीवन में आपकी वरद उपस्थिति हर दौर में मुझे ताकत देती रही है,देती रहेगी ।
जन्मदिन पर मेरी यही मंगलकामना है हिंदी पत्रकारिता के शिखर संपादक।