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खुशवंत सिंह सा कोई और नहीं / विवेक शुक्ला

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 खुशवंत सिंह के बगैर सुजान सिंह पार्क / विवेक शुक्ला 




खुशवंत सिंह के जाने के बाद सुजान सिंह पार्क यतीम सा हो गया। अब इधर उनके फ्लैट में दोस्तों की बैठकें नहीं होती। समय के बेहद पाबंद खुशवंत सिंह यारबाश थे। पर एक हद तक। शाम को आठ बजे के बाद वे सबको विदा कर देते थे। वे ड्राइंग रूम में आराम कुर्सी पर बैठकर दोस्तों से गप मारते थे। हंसी-ठिठोली के बीच भी उनके हाथ में कोई किताब रहती थी। दो दिन में एक किताब साफ। खुशवंत सिंह का आज 2 फरवरी को जन्म दिन है।


सुजान सिंह पार्क में वे साठ के दशक में आ गए थे। सुजान सिंह पार्क को उनके पिता सरदार सोबा सिंह ने अपने पिता के नाम से बनाया था। इंडिया गेट से बेहद करीब है। इसे आप चाहें तो एक सोसायटी भी कह सकतेहैं। इसका बाहरी रंग ईंट वाला है। दो मंजिला इमारत है सुजान सिंह पार्क। राजधानी का पहला एपार्टमेंट। इसके ठीक आगे एक पत्थर लगा है। उसे आप पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि सरदार सोबा सिंह ने अपने पिता सुजान सिंह के नाम पर इसका निर्माण करवाया था। निर्माण वर्ष 1946 है।


जिक्र पिता का 

खुशवंत सिंह मूलत: और अंतत:अंग्रेजी के लेखक थे, पर उनके चाहने वालों का संसार तमाम भारतीय भाषाओं में था और है। राजधानी के एक अख़बार में काम करते हुए उनके कॉलम का सालों अनुवाद करने का मौका मिला। कई बार बात हुई। साक्षात और फोन पर। वे बातचीत के दौरान अपने पिता सरदार सोबा सिंह का जिक्र कर दिया करते थे। उन्होंने ही कनॉट प्लेस और नई दिल्ली की कई महत्त्वपूर्ण इमारतों का निर्माण कराया था। इनमें मॉडर्न स्कूल, बड़ोदा हाऊस, राष्ट्रपति भवन वगैरह शामिल हैं।


 वे बताते थे उन्हें सुजान सिंह पार्क में रहना इसलिए पसंद है क्योंकि इधर सोबा सिंह का सारा कुनबा रहता रहा।  खुशवंत सिंह ग्राउंडफ्लोर के फ्लैट में रहते थे।  पत्नी की मौत के बाद वे अपने फ्लैट में एकाकी जीवन गुजार रहे थे। जिस इंसान के देश-विदेश में करोड़ों चाहने वाले हों, वह एकदम अकेला हो, यकीन नहीं होता था। उनके फ्लैट में प्रवेश करते ही आपको समझ आ जाता था कि ये आशियाना किसी शब्दों केसंसार से जुड़े शख्स का होगा। अब भी चारों तरफ करीने से किताबें बुक शेल्फ में रखी हैं। पंजाब, पंजाबियत, उर्दू शायरी, राजनीति,समाज वगैरह विषयों पर सैकड़ों किताबें रखीं हैं। पर वे नहीं हैं।


खुशवंत सिंह कहते थे कि वे इस बात की इजाजत नहीं देते कि कोई उनके घर से किताब लेकर जाए। सुजान सिंह पार्क का डिजाइन अंग्रेज आर्किटेक्ट वाल्टर जार्ज ने तैयार किया था।


 कैसा घर 


खैर, खुशवंत सिंह के फ्लैट में प्रवेश करते ही आपको उनके सेवक उनके स्टडी में ले जाते हैं। यहां पर ही खुशवंत सिंह आराम कुर्सी में बैठकर कोई पुस्तक को पढ़ रहे होते थे।गर्मजोशी से स्वागत करते थे हर मिलने वाले का । घऱ के कमरों की सीलिंग खासी ऊंची है। आपको तुरंत समझ आ जाता है कि सुजान सिंह पार्क का निर्माण 60-70 साल से पहले ही हुआ होगा। आजकल इतनी ऊंची सीलिंग के घर या फ्लैट नहीं बनते। आपको चार बेड रूम के इस फ्लैट के हर कमरे के बाहर झांकने पर गुलों से गुलजार मनमोहक बगीचा दिखता है। हर कमरा बाहर की रोशनी से नहाता है। बेजोड़ है इधर के फ्लैटों का आर्किटेक्चर। अब तो आप इस तरह के फ्लैटों की कतई उम्मीद नहीं कर सकते।


सुजान सिंह पार्क से पहले 


खुशवंतसिह यहां पर आने से पहले अपने पिता के जनपथ स्थित बंगले में रहते थे। अब भी उसके एक हिस्से पर उनके परिवार का कब्जा है,जहां से सोबा सिंह फाउंडेशन काम करता है। एक बार महान स्वाधीनता सेनानी अरुणा आसफ अली ने बताया था कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक दिन वो उनके जनपथ वाले घर में गई। वक्त रात का रहा होगा। खुशवंत सिंह उनसे मिलने बाहर आए। वे सिर को छिपाकर खड़ी थीं। पुलिस उन्हें पकड़ने की चेष्टा कर रही थी। उन्होंने खुशवंत सिंह से एक रात वहां पर रहने की इजाजत मांगी। जिसे उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया कि चूंकि ये मेरे पिता का घर है,इसमें किसी को रात गुजारने की इजाजत नहीं दे सकता। इतनी ईमानदार साफगोई खुशवंत सिंह सरीखा इंसान ही कर सकता है।


 उनसे रोज देश-विदेश से लेखक,पत्रकार,कवि और उनके प्रशंसक मिलने के लिए आते रहते थे। वे शाम को अवश्य मिलते हैं। दिन में विश्राम करते हैं।वे ऊपर से  देखने पर बहुत स्वच्छंद प्रवृत्ति के लगते हैं, परंतु उनका जीवन अत्यंत अनुशासित व्यक्ति का था। लंबे अर्से तक वह दिल्ली के जिमखाना क्लब में टेनिस खेलते रहे। 'सिंगलमाल्ट'उनकी प्रिय विस्की थी, जिसके दो पैग नियत समय पर पीते हैं।  खाना जल्द खा लेते हैं। घर में हों या किसी पार्टी में, पार्टी चाहे प्रधानमंत्री के घर पर क्यों न हो, उन्हें समय पर भोजन मिलना चाहिए। उन्हें सुबह जल्दी उठना होता था, क्योंकि उनके लिखने का समय वही होता था।

मुंबई में रहते पुत्र 

खुशवंत सिंह के पुत्र राहुल सिंह मुंबई में रहते थे। बीच-बीच में पिता के पास वक्त गुजारने के लिए आते-रहते थे। सुजान सिंह पार्क के ठीक आगे खान मार्केट हैं। यहां के दुकानदारों से खुशवंत सिंह का खासा लगाव था। दोनों एक दूसरे को बीते दशकों से जानते थे। खुशवंत सिंह एक दौर में हर रोज अपनी पत्नी और अपने या किसी संबंधी के बच्चों के साथ रात के वक्त मार्केट में आइसक्रीम खाने के लिए जाते थे। बेशक उनकी कलम के शैदाइयों से लेकर खान मार्केट के दुकानदारों को उनकी बहुत याद आती है। आएगी भी क्यों नहीं। आखिऱ उनके जैसा लेखक और इंसान सदियों में जन्म जो लेता है।

Vivek Shukla 

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