कितना न्याय किया मूर्तिकारों ने अशोक स्तंभ से,?
मूर्तिशिल्पियों लक्ष्मण व्यास और सुनील देवड़े ने गढ़ा है उस अशोक स्तंभ को, जिसे देश की नई संसद की छत पर स्थापित करने के साथ ही विवाद खड़ा हो गया है। विवाद इसलिए हो रहा है क्योंकि कहा जा रहा कि नई संसद में स्थापित अशोक स्तंभ उस अशोक स्तंभ से काफी हटकर है जो सारनाथ के संग्रहालय में पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अशोक स्तंभ को विगत सोमवार को देश के सामने प्रस्तुत किया। यह चार शेरों वाला स्तंभ भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में विख्यात है।
यह अशोक स्तंभ दिल्ली, जयपुर और औरंगाबाद में लक्ष्मण व्यास और सुनील देवड़े ने अपने-अपने स्टुडियो में बनाया। दरअसल नई संसद के निर्माण का कंट्रेक्ट टाटा ग्रुप को मिला है। उसकी तरफ से लक्ष्मण व्यास तथा सुनील देवड़े को अशोक स्तंभ बनाने का दायित्व मिला था। ये बेहद खास प्रोजेक्ट दो मूर्तिकारों को इसलिए दिया गया क्योंकि ये वास्तव में बड़ा काम था। भारत के चोटी के मूर्तिशिल्पी राम सूतार की तरफ से भी अशोक स्तंभ के निर्माण करने की इच्छा जताई गई थी। पर उन्हें यह अहम काम नहीं मिल सका। राम सूतार के पुत्र और स्वय़ं सिद्ध मूर्तिशिल्पी अनिल सूतार ने कहा कि टाटा समूह के सस्ते में काम करवाने के फेर में राष्ट्रीय स्तंभ के साथ न्याय नहीं हो सका। वे कहते हैं – “ जो राष्ट्रीय चिह्न संसद भवन में स्थापित हुआ है, वह उस अशोक बहुत स्तंभ से अलग है जो सारनाथ के संग्रहालय में है। संसद में लगे अशोक स्तंभ में शेरों के भाव बिल्कुल अलग दिख रहे हैं।”
अगर बात राष्ट्रीय चिन्ह और उसके अंदर के शेरों से हटकर करें तो अशोक देवड़े तथा लक्ष्मण व्यास पहले भी कई महत्वपूर्ण प्रतिमाएं बना चुके हैं। व्यास ने हरियाणा के पलवल में लगी महाराणा प्रताप की विशाल धातु प्रतिमा भी है। इसके अलावा, उन्होंने परशुराम जी की आदमकद प्रतिमाएं भी बनाई हैं। लक्ष्मण व्यास ने हीइंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हाथियों की कुछ मूरतें भी बनाईं हैं। राम किंकर और देवीप्रसाद राय चौधरी जैसे मूर्ति शिल्पियों के काम से प्रभावित 46 साल के लक्ष्मण व्यास ने अभी तक करीब 300 आदमकदम तथा धड़ प्रतिमाएं बनाई हैं। इसके अलावा बहुत से प्रतीकों की भी मूर्तियां बना चुके हैं।
राजधानी में स्थापित ग्यारह मूर्ति को महान मूर्तिकार देवीप्रसाद राय चौधरी ने बनाया था। उनका चित्रकला और मूर्तिकला, दोनों विषयों पर समान अधिकार था। वे ओरियंटल आर्ट स्कूल (कोलकाता) से शिक्षा ग्रहण कर वहीं शिक्षक बन गये । वे पहले आधुनिक मूर्तिकार थे जिन्होंने ब्रोंज माध्यम में भी काम किया । उनकी आदमकद मूर्तियों में गति व भाव का शानदार समन्वय है। इसी तरह से राम किंकर जी ने रिजर्व बैंक बिल्डिंग के बारह लगी यक्ष और यक्षिणी की अप्रतिम मूर्तियों को बनाय़ा था। रामकिंकर ने कंक्रीट, मिट्टी, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और अन्य उपलब्ध संसाधनों से आकर्षक मूर्तियां तैयार कीं। रामकिंकर धुन के पक्के थे, कभी थकते नहीं थे. मौसम के असर से बेखबर यह अनोखा कलाकार अपने चित्रों और शिल्पों में इतना डूबा होता था कि दिन और रात का भेद भूल जाता था।
उधर, मुंबई के जे.जे. स्कूल आफ आर्ट्स में पढ़े अशोक देवड़े ने अजंता-एलोरा की गुफाओं पर कई अतुल्नीय प्रतिमाएं बनाई हैं। ये अजंता एलोरा के विजिटर्स सेंटर पर रखी है। इसके अलावा वे भी कई महापुरुषों की मूरतें बन चुके हैं।उधर, सुनील देवड़े के काम पर महाराष्ट्र के महान मूर्तिकार सदाशिव साठे का असर दिखाई देता है। सदाशिव साठे ने देश के महापुरुषों की अनेक प्रतिमाएँ बनाईं । जितनी देश में, उतनी ही विदेश में। महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष, छत्रपति शिवाजी, जस्टिस एम सी छागला, विनोवा भावे आदि की प्रतिमाएँ इनमें प्रमुख हैं।सदाशिव साठे अश्वारोही प्रतिमाएँ गढ़ने में सिद्धहस्त थे।
ग्वालियर में झांसी की रानी के समाधि- स्थल पर बनी इस अश्वारोही प्रतिमा को किसने मुग्ध होकर न निहारा होगा ।रानी का घोड़ा दो पैरों पर खड़ा है। हवा में प्रतिमा तभी रहेगी जब संतुलन के लिए पूंछ को मजबूत छड़ से गाड़ दिया जाए, यह बात सदाशिव साठे जैसे कलाकार ही समझ सकते थे। बहरहाल, अशोक स्तंभ को बनाकर अशोक देवड़े और लक्ष्मण व्यास कला के संसार में अपने को स्थापित करने में सफल रहे है।
नए अशोक स्तंभ में क्या नहीं