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उपन्यास "पतन"का एक दृश्य। / रवींद्र कांत त्यागी

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उपन्यास "पतन"का एक दृश्य। / रवींद्र  कांत त्यागी 


तभी मेरी निगाह स्टूल पर रखे आज के अखबारों पर पडी. पहला पन्ना ही देखा था कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी. 

पूरे देश में भयानक स्तर पर विपक्षी नेताओं को जेल के सींखचों के पीछे धकेल दिया गया था. जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटलबिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सुन्दर सिंह भंडारी, मुरली मनोहर जोशी, चद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडीज, मधुलिमए, राम कृष्ण हेगड़े और राजनारायण को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया. पूरे देश में हजारों राजनैतिक लोगों और पत्रकारों को रात भर में ताबड़तोड़ गिरफ्तार किया गया था. जेलों में जगह ही नहीं बची थी. गिरफ्तारियां आज भी चालू रहने की प्रबल संभावना अखबार में व्यक्त की गयी थी. नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान और जनसत्ता. सारे अखबार केवल इसी समाचार से रंगे पड़े थे. जनता के सामान्य अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की आजादी और स्वतन्त्र पत्रकारिता इत्यादि को तुरंत प्रभाव से निरस्त कर दिया गया था. समाचार पढ़कर दिल में एक दहशत सी पैठ गयी थी.  

नाश्ता करते करते नौ बज गए और मैं अब यहाँ से निकल जाने की बाट जोह रहा था. ड्राइवर आ चूका था और गाड़ी तैयार थी. 

 तभी बहार किसी गाड़ी के रुकने की घरघराहट सुनाई पडी. कुछ पल में डोर बैल घनघना उठी. एक क्षण के लिए हम दोनों के चेहरों पर किसी अनहोनी की शंका का भय दिखाई देने लगा. इस समय किसी का आना संभावित नहीं था. 

मैंने ही आगे बढ़कर दरवाजा खोला. 

बाहर एक बुरखा नशीन महिल अपना पूरा मुँह ढांपे खड़ी थी. मेरे दरवाजा खोलने पर बिना पर्दा ऊपर किये वो झट से भीतर प्रवेश कर गयी. शैफाली दहशत भरी निगाहों से उसकी इस अजीब सी हरकत को देख रही थी. 

अंदर आने के बाद महिला ने अपने चेहरे पर से पर्दा हटाया. मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया "अरे मृणाल जी, आप".

शैफाली के चेहरे पर एक अजीब सा वितृष्णा का भाव आया और वो आश्चर्य जनक रूप से बिना कोई अभिवादन किये या एक शब्द भी बोले उठकर अंदर चली गयी. 

"अरे जंवाई राजा, अच्छा हुआ आप भी यहीं मिल गए. दरअसल हमारे साथी कामरेड इंदिरा गांधी के और उनकी इमरजेंसी के समर्थन में हैं मगर पूरे देश में ऐसी अफरातफरी मची है कि कब कौन लपेटे में आ जाये, कुछ पता नहीं. पूरा शासन, प्रसाशन कन्फ्यूजन में है. वो बस गैर कॉंग्रेसी देख रहे हैं और गिरफ्तार कर रहे हैं. वास्तव में कम्युनिष्टों का एक धड़ा इमरजेंसी के खिलाफ है और प्रशासन ये सुनिश्चित करने में असमर्थ है कि कौन सी.पी.आई है और कौन सी.पी.एम."उन्होंने बदहवास सी आवाज में कह. 

"मैं आप के लिए पानी लाता हूँ"कहता हुआ मैं पानी लाने के बहाने शैफाली के अजीब से व्यवहार का कारण जानने घर के अंदर चला गया. वो माथे पर हाथ रखे बेहद तनाव में किचन के स्टूल पर बैठी थी. 

"इस औरत से कहो कि यहाँ से चली जाय". उसकी आँखों से अंगारे फुट रहे थे.

"अरे शैफाली जी ऐसा भी क्या है भला. मेहमान के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं क्या. और वैसे भी वो हमारी परेशानी जानकर, खतरा उठाते हुए छुपकर दूसरे शहर से यहाँ आई हैं. पार्टी की सीनियर नेता हैं मृणाल जी. सर ने एक बार कॉलेज में मिलवाया था".

उसने पलटकर आग्नेय नेत्रों से मेरी आँखों में देखा. फिर शब्दों को तौलती हुई क्रोध से बोली "मेरा माँ की हत्यारन है वो. रखैल है मेरे बाप ...". आगे के शब्द उसकी हिचकी में खो गए. 

"ओफ़..."मैं तो इस प्रकार उसका कटु सम्बोधन सुनकर सन्न रह गया. अचानक मेरे मस्तिष्क में शैफाली के द्वारा लिखे 'प्रेमपत्र'में अपने पिता के लिए प्रयोग किया हुआ 'हरामखोर'शब्द गूँज उठा. 

धीरे धीरे मृगमरीचिका के पीछे बदहवास भागती उस मृगशाविका की रहस्यमयी परतें मेरे सामने खुलती जा रही थीं.

मैं एक ग्लास पानी और कुछ मिठाई के टुकड़े लेकर मृणाल जी के पास गया. उन्होंने गटागट पूरा पानी पी लिए. फिर धीरे से बोलीं "हमारी पार्टी के बड़े नेता इंदिरा जी से मिलकर अपना समर्थन व्यक्त करने वाले हैं और अपने लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगाने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु ... पूरे देश में भसड़ मची हुई हैं. किसी को न कुछ सुंनने की फुर्सत हैं न कहने का अधिकार. कितना समय इस प्रक्रिया को जमीनी धरातल पर पहुंचते हुए लग जायेगा, कुछ पता नहीं".

फिर अपना लहजा बदलते हुए बोलीं "धनंजय, इस बीच शैफाली अकेली हैं. तुम्हे उसका ध्यान रखना होगा. मुझे पता हैं कि मुझे और दिवाकर को लेकर उसके दिमाग में कुछ गलतफहमियां हैं मगर तुम जानते हो. फैमिली फ्रैंड होने के कारण मेरी सहानुभूति और चिंता उसके लिए हैं. मैं यहाँ ज्यादा देर रुक नहीं पाऊंगी. बाहर टैक्सी खड़ी हैं. मुझे जाना हैं. और सुनो. आज के बाद जब भी फोन पर बात होंगी तो मैं अपना नाम लक्ष्मी बताऊंगी. तुम समझ जाना. फोन इत्यादि पर भी सर्विलांस लगा हैं. चिंता मत करो. जल्द ही सब कुछ ठीक हो जायेगा मगर ..... स्थानीय प्रसाशन की अपने मालिकों को संतुष्ट करने के लिए और भी उल्टी सीधी गिरफ्तारियाँ करेगा. सावधान रहो धनंजय. न्याय मिलते मिलते न जाने कितना समय लगेगा. तुम लपेटे में मत आ जाना. बी केयरफुल. अब मुझे जाना हैं. बहुत काम हैं. बाय".

'मैम, अभी हम एडवोकेट के पास ही जाने वाले हैं."

"कोई फायदा नहीं होगा धनंजय. कहीं कोई सुनवाई नहीं है. सभी गिरफ्तार लोगों पर 'मीसा'लगा दी गयी हैं. न वकील न अपील न दलील. और सुनो. जो अधिकारी ऊपर के अदेशों में आनाकानी कर रहा है उसे सस्पेंड नहीं सीधा गिरफ्तार किया जा रहा है”। 

“ये मीसा क्या बाला है मेम”

“मीसा एक नया कानून है जो 1971 मे भारतीय संसद के द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए पारित किया गया था. मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट. वर्तमान मे सरकार ने उसे कई सुधार करके बेहद खतरनाक बना दिया है. किसी भी व्यक्ति को बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार किया और जेल में रखा जा सकता है. दोबारा कह रही हूँ. तुम दोनों कैसे भी करके गिरफ्तारी से बचे रहना ... हो सके तो कुछ दिनों के लिए ये स्थान छोड़ दो. अंडरग्राउंड हो जाओ, वार्ना न जाने कितने दिनों तक” ... और वो तेजी से उठकर चली गयी.


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