विश्व रंगमंच दिवस विशेष -
Rajshekhar Vyas ,
''उस ने सिर्फ दो घटिया टीवी सीरियलों में काम किया है और देखिये सारे लोग उसी की तारीफों में लगे हैं! मैं पिछले 15 सालों से रंगकर्म कर रहा हूँ,लेकिन मुझे तो किसी ने ऐसी इज्ज़त नहीं दी?"
रंगायन मैसूर का एक छात्र शिकायत कर रहा था और कारंत जी मुस्कुराते हुये उसे ताक रहे थे ।
अचानक कारंत जी उठे और पीछे रखे ब्लैक बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा- 'प्रसिद्धि'।
वे हमारी और पलटे और बोले ,
''प्रसिद्धि... ये अक्सर आसानी से भी मिल जाती है... कुछ उटपटांग कर देने से भी मिल जाएगी... किसी बड़े चौराहे पर पूरे कपडे उतार कर नाच देने से भी प्रसिद्धि मिल सकती है..."
उस गहन सन्नाटे में कारंत जी ने अपने हाथों से बोर्ड पर लिखा 'प्र'मिटा दिया....उस काले फलक पर अब 'सिद्धि'लिखा दमक रहा था।
"यह सिद्धि है.. - ना आसानी से मिलती है - ना उटपटांग तरीकों - ना सिफारिशों से.. इस का मार्ग थोडा लम्बा भी है और टेढ़ा भी ।
लेकिन हाँ.. जब सिद्धि मिलती है तो प्रसिद्धि भी खुद आकर उस के कदमों में बैठ जाती है...
प्रसिद्द लोगों की तारीफें साथ के लोग करते है लेकिन सिद्ध लोगों का गौरव पीढियां गाती है.. ।
प्रसिद्धि और सिद्धि... खुद सोचिये आपने किस ओर जाना हैं !
🥰राजशेखर व्यास @c